पिरुल लाओं और पैसे पाओं अभियान 2024 । true report with PDF ।

पिरुल लाओं और पैसे पाओं अभियान नमस्कार दोस्तों आज हम एक बार फिर से आप सभी का आपके अपने पोस्ट मे स्वागत करता हुँ आज हम उत्तराखण्ड की एक ऐसी योजना के बारे मे बात करेंगे जिसमे आप पत्ता बेच कर पैसा कमा सकते है और वो भी सरकार को । जी हां आपने सही पढा आज हम ऐसी ही एक योजना को लेकर आये है जो आपको रोजगार देगी और इसके लिए आपको कोई विशेष योग्यता की जरुरत ही नही है, तो चलिए फिर शुरु करते है बिलकुल शुरुवात से।

पिरुल लाओं और पैसे पाओं

क्या है पिरुल लाओं और पैसे पाओं अभियान जाने विस्तार से

पिरुल लाओं और पैसे पाओं अभियान हमें अकसर सुनने या देखने को मिल ही जाता है की इस जंगल मे आग लग गई या अगर अभी की बात करे तो बोलिविया मे 10 सालों बाद इतना भयानक आग लगी है लेकिन आग कैसे लगी है इसके बारे मे कोई जानकारी नही है । इसका एक कारण हम होते है और दुसरा कारण जंगल खुद होता है।

यहां हम दुसरे कारण की बात करेंगे यानी जंगल में किस तरह से आग अपने आप लग जाती है तो अगर आप कभी जंगल में घुमने गये होंगे तो आप देंखेंगे की वहा पे बहुत सारी सुखी पत्तियाँ और घास के साथ साथ सुखे पेड भी देखने को मिल जायेंगे जो आग लगने का सबसे बडा कारण है ।

बस इसी बात को सरकार ने देखा और इस योजना को उत्तराखण्ड सरकार ने जंगल की आग को नियंत्रित करने के लिए “पिरुल लाओं और पैसे पाओं” अभियान की शुरुआत की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य ही जंगली आग को रोकना और नियंत्रित करना है। और अगर किसी योजना मे जनभागीदारी मिल जाये तो उसकी सफल होने प्रायिक्ता अपने आप बढ जाती है।

जैसा की इस अभियान में स्थानीय लोगों और युवाओं की सक्रिय भागीदारी के लिए सरकार ने उनको जंगल से सूखी पिरुल (चीड़ के पेड़ की पत्तियों) को इकट्ठा कर के निर्धारित संग्रहण केंद्रों तक पहुंचाने पर उन्हें प्रति किलोग्राम 50 रुपये का प्रतिफल मिलेगा, जो उनके बैंक खातों में सीधे भेजा जाएगा इस तरह से इस योजना में आम लोगो जोडना बहुत आसान है।

पिरुल क्या है और सरकार क्यों ले रही है ये पत्तियां

गौरतलब है की पिरुल का तात्पर्य चीड़ के पेड़ की पत्तियों से है, जिसका उपयोग स्थानिय लोग अपने दैनिक कार्यो के लिये करते आ रहे है जैसे

  • घरेलू पशुओं के लिए बिस्तर बनाने,
  • उर्वरक के रूप में गाय के गोबर में मिलाने
  • फलों की पैकेजिंग के लिए

इसके साथ ही राज्य सरकार द्वारा पिरुल का उपयोग करके 25 किलोवाट का बिजली संयंत्र स्थापित किया है, जो बिजली उत्पादन के लिए इन पत्तियों का ही उपयोग करता है। इस लिए भी यह योजना पिरुल लाओं और पैसे पाओं अहम हो जाती है।

आखिर पिरूल पर ही ध्यान क्यों?

पिरुल यानी चीड़ की पत्तियाँ, जो 20-25 सेंटीमीटर तक बढ़ती हैं,जो सूखने पर बहुत ही ज्यादा ज्वलनशील होती हैं। चीड़ की फ़सल, जिसे स्थानीय भाषा में चैता भी कहा जाता है, जंगल में आग फैलने का एक बड़ा कारण है। पिरुल को पहाड़ों का अभिशाप भी माना जाता है।

जब इनमे आग लगती है और पेड़ जलता है, तो मक्का ढलान से लुढ़क जाता है और मक्का में मौजूद बीज जो आग को बड़े क्षेत्र में फैला देते हैं। पिरूल का अम्लीय प्रकृति का होने के कारण बहुत धीरे-धीरे विघटित होता है और इसके बड़ी मात्रा में गिरने से यह जमीन पर बहुत कम समय मे ही ज्यादा इकठ्ठा हो जाता है।

इस प्रकार, इसकी बड़ी मात्रा और धीमी गति से विघटन की दर के कारण ही यह जंगल में आग का एक बड़ा खतरा बन जाता है।आग को फैलने से रोकने के लिए अब तक का सबसे अच्छा तरीका वन क्षेत्र के लिए पत्तियों को इकट्ठा करना है। यह काम इतना असान भी नही है लेकिन जब लोग पिरुल लाओं और पैसे पाओं अभीयान से जुड जायेंगे तो कोई भी काम कठीन नही रह जाता।

पिरुल लाओं और पैसे पाओं अभियान लाभ क्या है

पिरुल लाओं और पैसे पाओं योजना को लाने का कई लाभ है

  • जंगल साफ हो जायेगा
  • पर्यटन के लिए सही रहेगा
  • पहाडी और आदीवासी लोगों को कमाई का एक जरीया मिलेगा
  • बिजली भी मिलेगी
  • जंगल मे आग कम लगेगी
  • पर्यावरण साफ होगा

कितना है उत्तराखंड में वन एवं पिरूल क्षेत्र 

अब हम यहा की वन क्षेत्र की बात कर लेते है तो भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार, उत्तराखंड में कुल दर्ज वन क्षेत्र 24,305 वर्ग किलोमीटर था, जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 45.44% है।

उत्तराखंड में वन क्षेत्र:

  • अत्यंत घने वन 5,055 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं
  • मध्यम सघन वन –12,768 वर्ग किलोमीटर और 
  • खुला वन – 6,482 वर्ग किलोमीटर

नोट – इस क्षेत्र में चीड़ के पेड़ अंग्रेजों द्वारा लाए गए थे। क्योकी उस समय इस पेड़ की लकड़ियों का इस्तेमाल रेलवे ट्रैक के स्लीपर बनाने में किया जाता था।

कहाँ कहाँ उत्तराखंड में चीड़ के पेड़ बहुतायत में हैं

उत्तराखंड के इन जिलों मे सब्से ज्यादा है चिड के पेड-

  • अल्मोडा,
  • बागेश्वर,
  • चमोली,
  • चंपावत,
  • देहरादून,
  • गढ़वाल,
  • नैनीताल,
  • पिथौरागढ,
  • रूद्रप्रयाग,
  • टिहरी
  • उत्तरकाशी 

अभियान की निगरानी के लिए उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नामित किया है|

प्रश्न . पिरूल लाओ-पैसे पाओ अभियान के तहत एक व्यक्ति को एक किलो पिरूल (चीड़ के पेड़ के पत्ते) के लिए कितना भुगतान किया जाएगा?
उत्तर: 50 रुपये प्रति किलो
यहांं तक पढने के लिए आपका शुक्रिया, हम पुरी तरह से कोशिश करते है की प्रत्येक लेख मे कोई गलती न हो उसके बाद भी कोई गलती होती हैं तो हम आपसे उस गलती के लिए माफी मांगते है। कृप्या आप इस प्रकरण में हमे अवगत करें जिससे हम उसे जल्द से जल्द सुधार कर सकें। तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें और अपने आस-पास ऐसे माहौल बनायें की महिलायें अपने आपको सुरक्षित महशुस करें,धन्यवाद।

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